हर एक पल में,
शोर में,
खामोशियों में,
हर पल के जुनूँ में,
अपनी मदहोशियों मे ख़ुद से पूछता हूँ,
फ़िर सोचता रह जाता हूँ,
उलझ कर उन्ही सावालों में.
कि तुम क्या मेरे सवाल थे ?
फिर क्यूँ संजोया मैंने तुम्हे जवाब सा ?
मंजिल का इरादा तो किया नहीं था....
रास्ते का सुकून तो हर पल जिया..फिर आज…ख़ुद को खोकर
उन्ही रास्तों में,
क्यूँ मंजिलों को दे दी तनहइयां तुमने....
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